दुर्गा चालीसा एक प्रसिद्ध हिंदू पौराणिक पाठ है जो मां दुर्गा की महिमा, शक्ति और कृपा का वर्णन करता है। पवित्र दुर्गा चालिसा (Durga Chalisa) का पाठ करने के मां दुर्गा की विशेष कृपा बरसती है तथा मां दुर्गा प्रसन्न होती है। अतः श्री दुर्गा चालिसा (Durga Chalisa Lyrics in Hindi) का नियमित पाठ करना चाहिये। जगत जननी मां दुर्गा अत्यन्त दयालु और कृपालु है। मां दुर्गा केवल सेवा पूजा से ही प्रसन्न हो जाती है।दुर्गा चालीसा हिंदू धर्म में माता दुर्गा की आराधना के लिए एक प्रसिद्ध और पवित्र प्रार्थना है। यह चालीसा माता दुर्गा की महिमा, शक्ति और उनके अवतारों का वर्णन करता है।
मां दुर्गा की सेवा पूजा करने वाले साधकों को मृत्यु लोक में ही स्वर्ग के समान सुखों की प्राप्ति होती है अतः साधक मां दुर्गा की निरन्तर सेवा पूजा करते हैं।
दुर्गा चालीसा के लाभ:
माता दुर्गा की कृपा प्राप्त होती है।
संकटों से मुक्ति मिलती है।
आत्मविश्वास और साहस में वृद्धि होती है।
मानसिक शांति और स्थिरता प्राप्त होती है।
दुर्गा चालीसा का पाठ करने से व्यक्तिगत और पारिवारिक जीवन में सुख और समृद्धि आती है।
दुर्गा चालीसा का पाठ कब करें:
दुर्गा चालीसा का पाठ नवरात्रि के दौरान करना विशेष फलदायक होता है।
दुर्गा चालीसा का पाठ शुक्रवार को करना भी विशेष फलदायक होता है।
दुर्गा चालीसा का पाठ कभी भी किया जा सकता है, लेकिन सुबह और शाम का समय सबसे अच्छा होता है।

नवरात्र में मां दुर्गा की सेवा पूजा का विशेष महत्व बताया गया है। मां दुर्गा की कृपा दृष्टि पाने के लिये शुक्रवार को दुर्गा चालिसा (Shri Durga Chalisa) का पाठ करना चाहिये। दुर्गा चालीसा ( Shri Durga Chalisa) के पाठ से मां दुर्गा की कृपा प्राप्त होती है और भक्त की उत्कट इच्छाओं को पूरा करने में सहायता मिलती है। दुर्गा चालिसा का पाठ इस प्रकार हैः-
श्री दुर्गा चालिसा (Durga Chalisa Lyrics in Hindi)
नमो नमो दुर्गे सुख करनी।
नमो नमो दुर्गे दुःख हरनी॥
निरंकार है ज्योति तुम्हारी।
तिहूं लोक फैली उजियारी॥
शशि ललाट मुख महाविशाला।
नेत्र लाल भृकुटि विकराला॥
रूप मातु को अधिक सुहावे।
दरश करत जन अति सुख पावे॥
तुम संसार शक्ति लै कीना।
पालन हेतु अन्न धन दीना॥
अन्नपूर्णा हुई जग पाला।
तुम ही आदि सुन्दरी बाला॥
प्रलयकाल सब नाशन हारी।
तुम गौरी शिवशंकर प्यारी॥
शिव योगी तुम्हरे गुण गावें।
ब्रह्मा विष्णु तुम्हें नित ध्यावें॥
रूप सरस्वती को तुम धारा।
दे सुबुद्धि ऋषि मुनिन उबारा॥
धरयो रूप नरसिंह को अम्बा।
परगट भई फाड़कर खम्बा॥
रक्षा करि प्रह्लाद बचायो।
हिरण्याक्ष को स्वर्ग पठायो॥
लक्ष्मी रूप धरो जग माहीं।
श्री नारायण अंग समाहीं॥
क्षीरसिन्धु में करत विलासा।
दयासिन्धु दीजै मन आसा॥
हिंगलाज में तुम्हीं भवानी।
महिमा अमित न जात बखानी॥
मातंगी अरु धूमावति माता।
भुवनेश्वरी बगला सुख दाता॥
श्री भैरव तारा जग तारिणी।
छिन्न भाल भव दुःख निवारिणी॥
केहरि वाहन सोह भवानी।
लांगुर वीर चलत अगवानी॥
कर में खप्पर खड्ग विराजै।
जाको देख काल डर भाजै॥
सोहै अस्त्र और त्रिशूला।
जाते उठत शत्रु हिय शूला॥
नगरकोट में तुम्हीं विराजत।
तिहुँलोक में डंका बाजत॥
शुम्भ निशुम्भ दानव तुम मारे।
रक्तन बीज शंखन संहारे॥
महिषासुर नृप अति अभिमानी।
जेहि अघ भार मही अकुलानी॥
रूप कराल कालिका धारा।
सेन सहित तुम तिहि संहारा॥
परी गाढ़ सन्तन पर जब जब।
भई सहाय मातु तुम तब तब॥
आभा पुरी अरु बासव लोका।
तब महिमा सब रहें अशोका॥
ज्वाला में है ज्योति तुम्हारी।
तुम्हें सदा पूजें नर–नारी॥
प्रेम भक्ति से जो यश गावें।
दुःख दारिद्र निकट नहिं आवें॥
ध्यावे तुम्हें जो नर मन लाई।
जन्म–मरण ताकौ छुटि जाई॥
जोगी सुर मुनि कहत पुकारी।
योग न हो बिन शक्ति तुम्हारी॥
शंकर आचारज तप कीनो।
काम क्रोध जीति सब लीनो॥
निशिदिन ध्यान धरो शंकर को।
काहु काल नहिं सुमिरो तुमको॥
शक्ति रूप का मरम न पायो।
शक्ति गई तब मन पछितायो॥
शरणागत हुई कीर्ति बखानी।
जय जय जय जगदम्ब भवानी॥
भई प्रसन्न आदि जगदम्बा।
दई शक्ति नहिं कीन विलम्बा॥
मोको मातु कष्ट अति घेरो।
तुम बिन कौन हरै दुःख मेरो॥
आशा तृष्णा निपट सतावें।
रिपु मुरख मोही डरपावे॥
शत्रु नाश कीजै महारानी।
सुमिरौं इकचित तुम्हें भवानी॥
करो कृपा हे मातु दयाला।
ऋद्धि–सिद्धि दै करहु निहाला ॥
जब लगि जियऊं दया फल पाऊं।
तुम्हरो यश मैं सदा सुनाऊं॥
श्री दुर्गा चालीसा जो कोई गावै।
सब सुख भोग परमपद पावै॥
देवीदास शरण निज जानी।
करहु कृपा जगदम्ब भवानी॥
॥इति श्रीदुर्गा चालीसा सम्पूर्ण॥