ओम जय जगदीश हरे सब से प्रसिद्ध आरती है जो भगवान जगदीश को समर्पित है। सामान्यतया सभी मन्दिरों में इस आरती को गाया जाता है तथा भगवान की पूजा की जाती है। “ओम जय जगदीश हरे” भगवान विष्णु की आरती है, जो हिंदू धर्म में बहुत पवित्र और प्रसिद्ध है। यह आरती भगवान विष्णु की महिमा और उनकी शक्ति का वर्णन करती है, और इसे अक्सर मंदिरों और घरों में गाया जाता है।
इस आरती का अर्थ यह है कि भगवान विष्णु संसार के स्वामी हैं, और वे अपने भक्तों के संकटों को दूर करते हैं। यह आरती भगवान विष्णु की महिमा और उनकी शक्ति का वर्णन करती है, और इसे गाने से भक्तों को शांति और सुख प्राप्त होता है।इस आरती में भगवान विष्णु की महिमा और उनकी शक्ति का वर्णन किया गया है। यह आरती भगवान विष्णु को प्रसन्न करने और उनकी कृपा प्राप्त करने के लिए गाई जाती है।
आरती के लाभ:
- भगवान विष्णु की कृपा प्राप्त होती है।
- संकटों से मुक्ति मिलती है।
- आत्मविश्वास और साहस में वृद्धि होती है।
- मानसिक शांति और स्थिरता प्राप्त होती है।
आरती का समय:
- सुबह और शाम का समय सबसे अच्छा होता है।
- विष्णु जयंती और अन्य विष्णु त्योहारों पर आरती करना विशेष फलदायक होता है।
भगवान विष्णु की आरती करने के लिए निम्नलिखित चरणों का पालन करें:
सामग्री
- भगवान विष्णु की तस्वीर या मूर्ति
- दीपक
- अगरबत्ती
- फूल
- प्रसाद
- आरती की पुस्तक
विधि
- स्नान और शुद्धि: सबसे पहले स्नान करें और शुद्ध वस्त्र पहनें।
- पूजा स्थल तैयार करें: भगवान विष्णु की तस्वीर या मूर्ति को पूजा स्थल पर रखें।
- दीपक जलाएं: दीपक जलाकर भगवान विष्णु को प्रकाश दें।
- अगरबत्ती जलाएं: अगरबत्ती जलाकर भगवान विष्णु को सुगंध दें।
- फूल चढ़ाएं: फूल चढ़ाकर भगवान विष्णु को पूजा।
- प्रसाद चढ़ाएं: प्रसाद चढ़ाकर भगवान विष्णु को भोग।
- आरती शुरू करें: भगवान विष्णु की आरती शुरू करें, जैसे कि “ओम जय जगदीश हरे”।
- आरती के दौरान: आरती के दौरान अपने हाथ जोड़कर भगवान विष्णु की पूजा करें।
- आरती के बाद: आरती के बाद भगवान विष्णु को धन्यवाद दें और प्रसाद को वितरित करें।
महत्वपूर्ण बातें
- भगवान विष्णु की आरती करने से पहले स्नान और शुद्धि करें।
- आरती के दौरान अपने हाथ जोड़कर भगवान विष्णु की पूजा करें।
- आरती के बाद भगवान विष्णु को धन्यवाद दें और प्रसाद को वितरित करें।
इस आरती से सम्बन्धित टेक्स्ट विडियो और लिरिक्स आपके उपयोग हेतु प्रस्तुत हैः-
आरती – ओम जय जगदीश हरे आरती (om jai jagdish hare)
ॐ जय जगदीश हरे, स्वामी जय जगदीश हरे । (om jai jagdish hare)
भक्त जनों के संकट, क्षण में दूर करे ॥
ॐ जय जगदीश हरे ।
जो ध्यावे फल पावे, दुःख विनसे मन का ।
स्वामी दुःख विनसे मन का।
सुख सम्पत्ति घर आवे, कष्ट मिटे तन का ॥
ॐ जय जगदीश हरे ।
मात-पिता तुम मेरे, शरण गहूँ मैं किसकी ।
स्वामी शरण गहूँ मैं किसकी ।
तुम बिन और न दूजा, आस करूँ जिसकी ॥
ॐ जय जगदीश हरे ।
तुम पूरण परमात्मा, तुम अन्तर्यामी ।
स्वामी तुम अन्तर्यामी ।
पारब्रह्म परमेश्वर, तुम सबके स्वामी ॥
ॐ जय जगदीश हरे।
तुम करुणा के सागर, तुम पालन-कर्ता ।
स्वामी तुम पालन-कर्ता ।
मैं मूरख खल कामी, कृपा करो भर्ता ॥
ॐ जय जगदीश हरे।
तुम हो एक अगोचर, सबके प्राणपति ।
स्वामी सबके प्राणपति ।
किस विधि मिलूँ दयामय, तुमको मैं कुमति ॥
ॐ जय जगदीश हरे।
दीनबन्धु दुखहर्ता, तुम ठाकुर मेरे।
स्वामी तुम ठाकुर मेरे ।
अपने हाथ उठाओ, द्वार पड़ा तेरे ॥
ॐ जय जगदीश हरे ।
विषय-विकार मिटाओ, पाप हरो देवा ।
स्वामी पाप हरो देवा ।
श्रद्धा-भक्ति बढ़ाओ, सन्तन की सेवा ॥
ॐ जय जगदीश हरे ।
श्री जगदीशजी की आरती, जो कोई नर गावे ।
स्वामी जो कोई नर गावे ।
कहत शिवानन्द स्वामी, सुख संपत्ति पावे ॥
ॐ जय जगदीश हरे ।