“इण धरती रो म्हाने अभिमान हो” एक राजस्थानी लोक गीत है जो राजस्थान में बहुत प्रचलित है तथा विभिन्न राजस्थानी कार्यक्रमों तथा विद्यालयों में आयोजित कार्यक्रमों में गाया जाता है। आपकी सुविधा के लिये इस गीत के बोल तथा वीडियो प्रस्तुत है-
इण धरती रो म्हाने अभिमान हो
इण पर वारां प्राण हो
आ धरती हिन्दवाण री आ धरती हिन्दुस्थान री
उत्तर में पहरे पर उभो परवत राज हिमाले है।
दक्षिण में रत्नाकर सागर इण रा चरण पखारे है।
इण धरती री करे आरी सूरज चाँद हो
इण पर वारां प्राण हो…………………………………।
काश्मीर री केसर क्यारयां
देव रमण ने तरसे है
गंग सिन्ध रे मैदानां में सोने रो मेह बरसे है।
इण धरती पर अवतरिया खुद श्री भगवान हो।
इण पर वारां प्राण हो…………………………………।
कल-कल करती नदियाँ जाणे
इण री गाथा गावे है।
चम-चम करता मरु रा टीला चाँदी ने शरमावे है।
अमरायाँ में आम्बा और खेतां में धान हो ।
इण पर वारां प्राण हो…………………………………।
जद दुनिया रो मिनख जमारो
नागो बूचो डोले हो।
इण धरती रो टाबर-टाबर वेदाँ रा मन्त्र बोले हो।
घूम-घूम दुनिया में या फैलायो ज्ञान हो।
इण पर वारां प्राण हो…………………………………।